रुद्र : भाग-२
कमिश्नर ऑफिस से निकलते ही इंस्पेक्टर अभय ने सबसे पहले विराज और विकास को फोन करके आज शाम अपने घर पर बुलाया। ये तीनों अक्सर ऐसे काम के बीच में समय निकालकर थोड़ा वक़्त अपनी दोस्ती को दिया करते थे। रुद्र, अभय, विराज और विकास चारों अच्छे दोस्त हैं। पूरे बारह साल ये साथ में एक ही स्कूल में थे। कुछ सालों बाद रुद्र इंजीनियर बन गया और ये तीनों पुलिस में भर्ती हो गए। करीब एक साल से रुद्र यहाँ नहीं है। इस एक साल में बाकी तीनों भी सिर्फ काम के सिलसिले में ही एक-दूसरे से मिल पा रहे थे। आज कई महीनों बाद ये तीनों अभय के घर पर इकट्ठा होने वाले हैं।
इंस्पेक्टर अभय का घर शहर के सूर्योदय नगर में स्थित एम. के. कॉलोनी के मध्य में बना हुआ एक सामान्य आकर का दो मंजिला मकान है। कॉलोनी में इसी तरह के मकान थोड़ी-थोड़ी दूरी पर बने हुए हैं। अभय के साथ घर में उनके माता-पिता भी रहते हैं, जो कि अभी गाँव गए हुए हैं। अभय के पिता एक रिटायर्ड पुलिस ऑफिसर हैं। डिपार्टमेंट में आज भी उनकी ईमानदारी की मिसाल दी जाती है।
इंस्पेक्टर अभय ने शाम को घर पहुँचते ही सारी तैयारियाँ कर ली थी। फ्रेश होने के बाद सात बजे से ही वो बाकी दोनों का इंतजार कर रहा था।
साढ़े सात बजे के आसपास घर की घंटी बजी। इंस्पेक्टर अभय ने मुस्कुराते हुए दरवाजा खोला और विराज और विकास को अंदर आने का इशारा किया।
"बोल भाई अभय, कुछ खास काम था क्या? कोई परेशानी है क्या? तू फोन पे थोड़ा टेंशन में लग रहा था।" विराज ने चेहरे पर थोड़े चिंता के भाव के साथ कहा।
"अरे, क्या एसपी साहब। हमेशा इतनी टेंशन क्यों लेते हो? कोई टेंशन वाली बात नहीं है। मैंने तो तुम लोगों को कुछ अच्छी खबर सुनाने के लिए बुलाया है।" अभय ने हँसते हुए कहा और उन दोनों को सोफे पर बैठने का इशारा किया।
"देख अभय, जो भी बात है वो बोल। लेकिन आज के बाद कभी ऐसे ऑफ ड्यूटी मुझे सर वगेरह बोलकर चिढ़ाया ना, तो छोडूंगा नहीं तुझे।" विराज ने गुस्सा दिखाते हुए कहा।
अभय और विकास ठहाका लगाकर हँसने लगे। विराज को अपने दोस्तों के द्वारा खुद को 'सर' कहकर बुलाना पसंद नहीं था। उसे बड़ा ही अजीब लगता था, जब, वो जो हमेशा उसे उसके नाम से बुलाते थे, वो दोस्त उसे सर कहकर बुलाएं। इस वजह से अभय और विकास अक्सर उसे चिढ़ाते थे।
"ठीक है भाई, अब शांत हो जा। अब से ये अभय तुझे नहीं चिढ़ाएगा।" विकास ने अपनी हंसी दबाते हुए कहा।
"ठीक है। वैसे अभय तूने बुलाया क्यों ये तो बता। और वो उस इन्फॉर्मेशन का क्या हुआ? तूने कमिश्नर साहब से आर्या की कौनसी इन्फॉर्मेशन शेयर की है?" विराज ने थोड़ी जिज्ञासा से पूछा।
"यार, यही बताने के लिए तो तुम लोगों को यहाँ बुलाया है। एकदम हिला देने वाली बात पता चली है। ये आर्या इसी शहर में रहता था। इसके पिता इस शहर के नामी व्यक्ति थे, और उनकी ज्वेलरी शॉप थी।" अभय ने थोड़े गंभीर स्वर में कहा।
इतना सुनते ही विराज और विकास दंग रह गए। उन्होंने कुछ न बोलते हुए अभय के आगे बढ़ने का इंतजार किया।
"और सबसे बड़ी बात, पता है, वो आर्या कौन से कॉलेज में पढ़ता था?" अभय ने थोड़ा सस्पेंस बनाते हुए कहा।
"कौन से?" विकास ने बेसब्री से पूछा।
"जिंदल टेक्निकल इंस्टीट्यूट !!"
अभय के इतना कहते ही विराज और विकास दोनों को जोर का झटका लगा।
"ये तो वही कॉलेज है ना जिसमें अपना रुद्र था?" विराज ने अभय की तरफ देखते हुए पूछा।
"हाँ। ये वही कॉलेज है। वैसे तुम दोनों को याद है? उस कॉलेज में एक बार रुद्र की एक लड़के से लड़ाई हुई थी। उस झगड़े में उस लड़के को काफी चोट लगी थी और उसके दाहिने हाथ की चार उँगलियाँ भी कट गई थी।"
" हाँ। तो? उस बात का इस केस से........क्या!!!! मतलब रुद्र ने जिसे पीटा था वो आर्या था!!" विकास ने लगभग अपनी जगह पर उछलते हुए पूछा।
" हाँ। " अभय ने एक मुस्कान के साथ कहा।
ये बात सुनते ही विराज और विकास दोनों को जैसे सदमा सा लग गया। उन्हें अब तक यही पता था, की आर्या एक साल पहले ही इस शहर में आया है। लेकिन वो गलत थे। आर्या ना सिर्फ इस शहर में रहा है, बल्कि उनके सबसे करीबी दोस्त के साथ उसकी हाथापाई भी हो चुकी है।
"अब इतना सोचना बंद करो।" अभय ने उन दोनों के कंधों को हिलाते हुए कहा।
विराज और विकास एक बार फिर वास्तविक दुनिया में आ चुके थे।
"इसका मतलब आर्या का पूरा नाम, करणवीर आर्या है?" विराज ने थोड़ी हैरानी से बोला।
"हाँ। करणवीर बलराज आर्या।" अभय ने एक - एक शब्द पर जोर देते हुए कहा।
विराज और विकास कुछ और बोलना नहीं चाह रहे थे, क्योंकि , अबतक उन्होंने जो कुछ भी सुना उसने उन्हें चौंका दिया था। अभय उनकी हालत समझ गया था।
"वैसे आजकल तो रुद्र ट्रेनिंग पर गया है ना। कितना वक़्त बीत गया उससे मिले हुए। कुछ खबर है क्या तुम लोगों को कि वो कब आने वाला है?" अभय ने माहौल को थोड़ा ठंडा करने के लिए बात बदलने की कोशिश की।
"अरे हाँ! ये तो सबसे जरूरी बात थी जो मैं तुम दोनों को सुबह ही बताने वाला था। लेकिन जब अभय ने घर पर बुलाया तो सोचा शाम को ही बता दूंगा। अपना रुद्र कल सुबह ही आ रहा है। " विकास ने चेहरे पर मुस्कान लिए कहा।
"लेकिन वो तो दो दिन बाद आने वाला था न?" अभय ने कहा।
"हो सकता है काम जल्दी खत्म हो गया हो। वो सब छोड़ो, अभी अपने-अपने घर जाते हैं। कल उसे लेने एयरपोर्ट भी तो जाना है।" विराज ने बेहद खुशी से कहा।
"नहीं-नहीं!! रुद्र फ्लाइट से नहीं, ट्रेन से आ रहा है। सुबह सात बजे की ट्रेन से।" विकास ने सभी की गलतफहमी दूर करते हुए कहा।
"ये भी अजीब बंदा है। इतना पैसा है, लेकिन इसे ना जाने क्यों ट्रेन की भीड़-भाड़ ज्यादा पसंद है। खैर, कल सुबह मैं विकास को लेकर यहाँ आ जाऊंगा, तू तैयार रहना, साथ में चलेंगे उसे लेने।ज़
"चल ठीक है। मैं तैयार रहूँगा, लेकिन तुम लोग देर मत करना। वैसे उसके घर से भी कोई जाने वाला है क्या?" अभय ने सोफे से उठते हुए पूछा।
"नहीं, वो सभी को सरप्राइज देने वाला है।" विकास ने विराज के साथ दरवाजे की ओर बढ़ते हुए कहा।
"चल, ये भी अच्छा है। मिलते हैं फिर कल। गुड नाईट।" अभय ने दरवाजे के पास खड़े होकर कहा।
विराज और विकास भी अभय को गुड नाईट बोलकर अपनी-अपनी बाइक से घर की ओर निकल पड़े।
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स्थान : मुंबई सेंट्रल रेलवे स्थानक
एक नया दिन। सूरज की किरणें धीरे-धीरे आसमान में फैल रही हैं। आमतौर पर इस समय भी स्टेशन पर हजारों की भीड़ होती है, लेकिन आज रविवार होने के कारण थोड़ी गनीमत है। कुछ लोग बेंच पर बैठ अखबार पढ़ते हुए अपनी ट्रेन का इंतजार कर रहे हैं। कुछ लोग किसी को स्टेशन से लेने आए हैं, तो कुछ सिर्फ टाइम पास करने।चाय- समोसे वालों ने भी आवाज लगाकर लोगों को अपनी ओर आकर्षित करना शुरू कर दिया है। सभी खुश दिख रहे हैं, लेकिन अंदर-ही-अंदर उन्हें यह डर भी है, कि कहीं उनकी शांति भंग करने उस आर्या के गुंडे न आ जाएँ।
"क......क्या...यार..., अभी ट्रेन आने में और आधा घंटा है, और यहाँ बैठे हुए भी आधा घंटा बीत चुका है। इतनी जल्दी क्यों उठा लाया तू हमें?" विकास ने उबासी लेते हुए विराज से पूछा।
"बस कर यार। तुझे देखकर तो हमें भी नींद आने लगी है। मैंने सोचा ट्रेन का क्या भरोसा, कभी जल्दी तो कभी देर से आती है। यही सोचकर हम यहाँ इतनी जल्दी आ गए।" विराज ने थोड़ी बोरियत से कहा।
"वैसे भी अब बस पच्चीस मिनट बाकी हैं।" अभय ने अखबार पढ़ते हुए बिना सर ऊपर उठाए कहा।
विकास भी आँखे बंद करके झपकी लेने लगा। विराज बार-बार टाइम देख रहा था।
अचानक ही दूसरे प्लेटफार्म से उन्हें किसी महिला के चीखने की आवाज सुनाई दी। अभय और विराज ने झटके से उस दिशा में देखा। विकास जो हल्की नींद में था, चीख की वजह से हड़बड़ा कर इधर - उधर देखने लगा। कुछ समझ न आने पर उसने उस दिशा में देखा जहाँ अभय और विराज देख रहे थे। विकास की आँखों की पुतलियाँ फैल गयी थीं। अभय के चेहरे से पता चल रहा था, कि इस वक़्त वो कितना गुस्से में था। विराज के चेहरे पर भी गुस्से और हैरानी के मिले-जुले भाव थे।
सामने वाले प्लेटफार्म पर एक हट्टा-कट्टा बदमाश जैसी शक्ल वाला आदमी, एक महिला को जबरन अपने कंधों पर उठाकर ले जा रहा था। उसके साथ और ७-८ उसी की तरह और बदमाश खड़े थे।
अभय अचानक से उठा और इस प्लेटफार्म से उस प्लेटफार्म की और दौड़ता हुआ पटरी के ऊपर से कूद कर चला गया। उसके पीछे विकास और विराज भी उस ओर चले गए।
अभय, विराज और विकास भागकर उस आदमी के सामने खड़े हो गए और अभय ने उस आदमी को उंगली के इशारे से उस महिला को नीचे उतारने को कहा। उस आदमी ने जवाब में बस एक कुटिल मुस्कान दी। उसकी इस हरकत से अभय का पारा और चढ़ गया।
अभय ने उसे गुस्से से देखते हुए कहा, "देख शेरा, चुपचाप उसे नीचे उतार और अपने आप को कानून के हवाले कर दे।"
उस गुंडे शेरा के बाकी साथी इस तरह हँसने लगे मानो अभय ने कोई चुटकुला सुनाया हो।
शेरा ने उस महिला को नीचे उतारा और उसका हाथ अपने एक साथी के हाथ में पकड़ाते हुए कहा,"वाह!! क्या बात है। आज तो एक साथ तीन-तीन पुलिसवालों की मौत होगी मेरे हाथों। आर्या भाई तो खुश हो जाएँगे एकदम।"
"देख शेरा, वैसे तो अभी हम अपने एक दोस्त को लेने आए हैं। लेकिन अगर तू चाहता ही है, तो पहले हम तुझे ही पीट देते हैं।" विराज ने एक हल्की सी मुस्कान के साथ कहा।
अचानक ही शेरा के एक इशारे पर उसके सारे आदमियों ने अभय, विकास और विराज कि ओर दौड़ लगा दी। अभय भी दौड़ता हुआ जाकर शेरा से भिड़ गया। इधर वो महिला अब भी उस बदमाश की पकड़ से निकलने की नाकाम कोशिश कर रही थी। विराज ने अपने दोनों हाथों से दो गुंडों को गले से पकड़ा हुआ था। उसके हाथों की उभरी हुई मांसपेशियाँ बता रही थी, की उन दोनों गुंडों को कितनी तकलीफ हो रही होगी।
इधर विकास अपने तेज दिमाग और फुर्तीले शरीर से उन गुंडों के हर वार से बच रहा था, और बीच-बीच में उनको कभी किसी खंभे, तो कभी किसी बेंच से भिड़ा रहा था।
अभय और शेरा एक-दूसरे को बराबर की टक्कर दे रहे थे। अभय का शरीर कई जगहों से चोटिल हो चुका था। ऐसा इसलिए, क्योंकि शेरा ने चाकू निकाल ली थी। अभय ने अचानक अपने शरीर को हवा में घुमाया और एक जोरदार लात शेरा के सीने पर मारी। इस अप्रत्याशित हमले से शेरा हड़बड़ा कर गिर पड़ा और उसके हाथ से चाकू भी गिर गई। अभय ने मौके का फायदा उठाकर उस चाकू को उठा लिया और उसे पूरी ताकत से शेरा की जांघ में घुसा दिया। वातावरण में शेरा की जोरदार चीख गूँज उठी।
अभय को लगा की अब थोड़ी देर तक शेरा यहीं पड़ा रहेगा। ये सोचकर अभय विकास की मदद करने के लिए उस और दौड़ा। लेकिन अचानक ही उसे विराज ने पीछे देखने का इशारा किया। अभय जैसे ही पीछे मुड़ा, वो ये देखकर दंग रह गया, कि शेरा अपने घाव को अपने बाएँ हाथ से दबाकर खड़ा है। उसके दाएँ हाथ में बंदूक थी, जिसके ट्रिगर पर उसकी उंगली कसती जा रही थी, और उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी।
अभय ने स्थिति को समय पर भाँप लिया और नीचे झुक गया। शेरा की बंदूक से निकली गोली अभय के ठीक पीछे बुक स्टाल पर जाकर लग गयी। इधर विराज और विकास का भी पूरा ध्यान अभय की ओर होने की वजह से उन दोनों को गुंडों ने पकड़ लिया था। अभय ठीक से खड़ा ही हुआ था, कि अचानक से एक गुंडे ने उसके पैर पर जोरदार लात मारकर उसे नीचे गिरा दिया।
शेरा ने एक बार फिर अपनी बंदूक अभय की ओर तानकर ट्रिगर पर उँगली रख दी। सभी की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं।
दोस्त को इस हालत में देखना विराज और विकास, दोनों के लिए ही आसान नहीं था। दोनों ने अपनी आँखें बंद कर ली थी। अभय की आँखें भी बंद थीं, लेकिन चेहरे के भाव से लग रहा था कि उसने अपने आप को जुर्म के खिलाफ इस लड़ाई में शहीद कहलवाना स्वीकार कर लिया हो।
अब तक जो जगह चीख और मारपीट की आवाजों से भरी हुई थी, अचानक ही वहाँ सन्नाटा पसर गया था। पास वाले प्लेटफार्म पर खड़ी ट्रेन के लोग भी इसी ओर देख रहे थे। अचानक से इस सन्नाटे को भंग करती हुई गोली की आवाज वातावरण में गूँज उठी। विराज और विकास के सब्र का बांध टूट गया और वो दोनों फूट-फूट कर रोने लगे। अचानक उन्हें महसूस हुआ कि जिन बदमाशों ने उन्हें पकड़ा था, अब उनकी पकड़ ढीली हो चुकी है। उन्होंने अपनी बोझिल आँखों को काफी मेहनत के बाद खोला और वो दोनों सामने का दृश्य देखकर चौंक गए। अभय अपने स्थान पर खड़ा सामने कि ओर देख रहा था। सामने शेरा का मृत शरीर पड़ा हुआ था। गोली सीधा उसके सिर के आर-पार हो चुकी थी।
शेरा के थोड़ा पीछे करीब ६ फीट का नौजवान खड़ा था। उसका रंग गोरा था, हल्की ट्रिम की हुई दाढ़ी और काले रंग का गॉगल पहना था उसने। बाल भी ढंग से कटे हुए थे। हाथ में रुद्राक्ष की एक माला लपेटी हुई थी और एक सोने का ब्रेसलेट पहना हुआ था उसने। उसने सफेद टी-शर्ट के ऊपर काले रंग का जैकेट और काले रंग की जीन्स पहनी थी। उसके हाथ में गन थी, जिससे उसने अभी-अभी शेरा को मारा था।
अभय , विकास और विराज आँखें फाड़े बस उसे ही देखे जा रहे थे। उन्हें इस बात का भी पता नहीं चला, कि कब शेरा के मरते ही उसके साथी फरार हो गए।
उन तीनों में से किसी की कुछ समझ नहीं आ रहा था। सबसे पहले विराज संभला और उसने लड़खड़ाती हुई आवाज में कहा, "...रु.....रुद्र...!!!!"
उन्हें इस बात ने हिला कर रख दिया की अभी-अभी जिसने शेरा को गोली मारी वो कोई और नहीं, बल्कि उनका दोस्त, रुद्र रघुवंशी था।
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अब कहानी और भी रोमांचक होने वाली है। आखिर रुद्र, जो की एक इंजीनियर है, उसके पास गन क्यों है? क्या रुद्र को शेरा को मारने के लिए सम्मान मिलेगा या फिर कहीं हमारे हीरो पर खून का इल्जाम तो नहीं लगेगा? जानने के लिए अगला भाग अवश्य पढ़ें।🙏
- अमन मिश्रा
Shaba
05-Jul-2021 03:12 PM
अरे वाह!! हीरो की एण्ट्री तो धमाके दार करवाई आपने। ये भाग भी बहुत ही रोमांचक रहा। स्टेशन पर भिड़ंत का दृश्य बहुत ही शानदार रहा। कहानी अपने लय से चल रही है और आगे पढ़ने के लिए संभावनाओं के द्वार आपने खोल रखे हैं। बहुत ही शानदार।
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